बहुत दिनो से सोच रह था कि..इस रचना को आप सब के साथ ... प्राथनाये अधुरी रहने तक मेरे सान्सो के आकाश मे दस्तक मत देन तुम ओ मृत्यु सुख दुख के संग सहवास पीडा भोगती मेरी देहं na साध ले आसीम स्म्रितियो की परिक्रमा पुर्न करतामेरा कारुनिक मन आँखों से ना धलक जाये मेरे जीवन मे रुपायित मत होना तुम ओ मृत्यु
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