Sunday, March 29, 2009

मानव मन

एक आम व्यक्ति, जो अपने आस पास फैले प्रकृति के काव्य की कुछ पंक्तियाँ समझ लेता है, और उन्हे चुराकर एक नयी कविता के रूप मे लाता है. मेरे लिए कविता जीवन से जुड़ने का एक माध्यम है जहाँ हम थोड़ा और गहराई से जाँच परखकर देखते हैं अपने आप को, अपने जीवन को, अपने वातावरण को. इन्ही सब चेष्टाओ की परिणति है
मेरी फितरत से नाराज़ मेरे दोस्त सुनोमेरे रंगों के बिखरे सभी तार बुनोकि तुमको भी कोई ख्वाब नया मिल जायेमेरी फितरत पर लगा दाग यों ही धुल जायेआसमाँ से भी तो पूछो ये बरसता क्यों हैआँख में बूँद लिए दिल ये तरसता क्यों हैकि तुमको भी कोई टूटा ख्वाब मिल जायेमेरी फितरत पर लगा दाग यों ही धुल जायेनींद के पन्ने इसलिए मैंने संभाले हैंरात भर चलते रहे , पाँव भर छाले हैंकि तुमको भी छालो से सना ख्वाब कोई मिल जायेमेरी फितरत पर लगा दाग यों ही धुल जायेबस्तियों से अपना रुख ही जिसने मोड़ लियारेत की उड़ती छाँव को ही खुद पे ओढ़ लियाकि तुमको भी ख्वाब बंजारा कोई मिल जायेमेरी फितरत पर लगा दाग यों ही धुल जाए"ये कविता हमारे मित्र 'SUNITA&YOGEE' की एक टिप्पणी से प्रेरित है, इसीलिए उन्ही को समर्पित भी है"
प्यार एक विलक्षण अनुभूति है। सारे संसार में इसकी खूबसूरती और मधुरता की मिसालें दी जाती हैं। इस सुकोमल भाव पर सदियों से बहुत कुछ लिखI

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