Monday, March 30, 2009

क्यों कभी आसमान नही बन पाते हैं

न हुई गर मेरे मरने से तसल्ली न सही इन्तिहां और भी बाक़ी हो तो ये भी न सही If my death does not satisfy you, no problem If you wish to test my love further, no problem
पिंजरों के भी जज़्बात होते हैं
वो भी परिंदों के लिए रोते हैं
बस परिंदों के शोर में कहीं
अपनी दबी आवाज़ खो देते हैं
किसी का आशियाँ कहला सकें
इसलिए कितना जतन करते हैं
पर परिंदे हैं कि हर वक़्त उसे
अपना कहने से मुकरते हैं
कभी कभी हताश गुस्से में
शिकायत भी करते होंगे
फिर अपनी शिकायतों का क़र्ज़
अपने ही दर्द से भरते होंगे
हर जतन करते हैं ये
कभी हँसते, कभी रोते, कभी जिंदगी के गीत गाते हैं
अब कैसे समझाऊँ मैं इनको
ये क्यों कभी आसमान नही बन पाते हैं

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